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विरह –भाव

  • Writer: Ravendra Kumar | Senior Consultant
    Ravendra Kumar | Senior Consultant
  • Aug 25, 2024
  • 1 min read
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उनकी उलझी यादों में विक्षोभित,

व्यापक व्याकुल व्युत्पन्न हुआ मैं बैठा हूँ

उद्धत उन्मीनत करूण व्यंग सार सा,

रूदन ह्रदय की गति को रोके लेटा हूँ।।


रोको इस रणधेरी को किंचित मन,

कर्ण–कटु, वादन ध्वनि समेटे बैठा हूँ

आशंकित ह्रदय, भ्रामक भाव समझ,

भृकुटी–प्रतञ्चता लिए मैं बैठा ऐंठा हूँ।।


छिटक गई जो जल में मीन की भांति,

उठती गिरती जल–तरंग को गिनने बैठा हूँ

कुछ छंद लिए मैं उनके अपने आंगन में,

उनकी ही आभा विस्मृत करने बैठा हूँ।। 


प्रलुब्ध तृष्णा में हीन भाव ग्रसित,

विरह वेदना में विचलित हरण हुआं। 

कलुषित कामना कंठित काल सहित, 

लिए कृपाण मैं काल समक्ष ही बैठा हूँ।। 


 – रावेन्द्र कुमार

2 Comments


farsheenumroy
Nov 25, 2024

Just assumed becoming fan for you

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Ravendra
Jun 11
Replying to

Hey Thanks reader 😀 😀

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