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संकल्प से पुनरुत्थान तक

  • Writer: Ravendra Kumar | Senior Consultant
    Ravendra Kumar | Senior Consultant
  • Sep 7, 2024
  • 1 min read

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न वज्र सा प्रयास हो,

न धम्म सी सिला हो ।

जो हो गिरा, हो उठ खड़ा,

न फिर तेरा परिहास हो।।


न कैकयी सा संवाद हो,

न सुग्रीव सा विश्वास हो ।

जो हो चुका, हो उठ चला,

न फिर तेरा ह्रास हो।।


न कर्ण सा अपवाद हो,

न भीम सा विकराल हो,

जो हो बंधा, कर बंध खुला,

न फिर युद्ध का सारांश हो।।


न जलधि सा शांत हो,

न तूफान सा अशांत हो,

जो हो अधीर, कर धारण धीर,

न फिर राम सा वनवास हो।।


न भ्रमर का संगीत हो ,

न प्रलय की टंकार हो।

जो है योधन, कर शांति अनुमोदन,

न फिर महाभारत का संग्राम हो।।


न संघर्ष की कोई आश हो,

न विप्लव का कोई साधन हो।

जो है व्यथित, चल उठ सद्भाव दे,

न फिर अपमान का कोई लांछन हो।।


-- रावेन्द्र कुमार

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